11/20/2011

अमृता ,...

अमृता ,...
ख़ामोशी की एक नदी, जो आज भी बहती है
राज़ है गहरे, आँखों ही आँखों में कहती है .... 

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर पंक्तिया .......
    मेरे नये पोस्ट में स्वागत है |

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  2. बरसों पहले थम थम बहती
    हमने इक सरिता देखि थी
    गहरे सागर के अंतर से
    वो उभरी थी

    हमने उसको नाम दिया था ...
    कल कल कल कल

    धरती पर वोरेंग रेंग ही चलती सब को लगती थी
    चलती चलती ... लिख लिख कर बातें कहती थी
    बोल बोल कर रिश्तों के स्वेटर बुनती थी
    झाँक झाँक कर सबको ही देखा करती थी

    वो नदिया थी कुन कुन से सपने रचती थी

    खेतों खलियानो सन्नाटों को तय करके
    वह हर पल अन्थकी सदा बहती जाती थी

    रेंग्रेंग बहती जाती थी
    कहती थी मंजिल इक बर्फीली छोटी
    वह चोटी जिस जा कर वो जम जायेगी
    एक धडकता दिल लेकर बस सो जायेगी
    सो जायेगी सदियों तक वह निपट अकेली
    जो चाहेंगयून्हें मिलेगी जमी जिन्दनादिया सी

    उसकी बातें एक हमसफ़र ने सुन लीं थीं
    उन बातों को तस्वीरों बना बना कर
    रंगों के आकार बना कर दिखलाया था

    उन बातों को एक अमृता नाम दिया था

    बातों की उसकी वो अमृता
    बुला बुला कर कहती है जो प्रेम कहानी
    उसे सुनो तो शिखरों से बहती ठंडक के
    पागल लम्हे ठहर ठहर बहते है
    और शिखर के मंदिर की चांदी की घंटी
    बजती है तो कायनात गाने लगती है

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